रचना चोरों की शामत
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Monday 6 January 2014
तेरा मेरा प्यार सखी
इक बंधन ने बाँध लिया है, तेरा मेरा प्यार सखी।
जाने कैसी डोर कहाँ से, जोड़ गई हिय तर सखी।
इक दूजे को कब जाना है, फिर भी कितने पास हुए
जो दिखती तस्वीर सामने, मन में भी आकार सखी।
जाने किस कोने से आतीं, मंत्र-मुग्ध सी आवाज़ें
सम्मोहित सी आ जाती हूँ, पुनः यहीं हर बार सखी।
सावन सूखा देख-देख कर, पतझड़ को सच माना था
तन-मन को कर गई तरंगित, स्नेह की एक फुहार सखी।
सन्नाटों की दुनिया में बस, साँसों का ही साज़ सुना
मौन हुआ मुखरित जब बरसी, रस-छंदों की धार सखी।
जन्म लिया गीतों ने जब इस मन में तेरा प्रेम बसा
और ‘कल्पना’ मिला वेब का, यह सुंदर संसार सखी।
-कल्पना रामानी
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