रचना चोरों की शामत

मेरे बारे में

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कल्पना रामानी

Saturday 6 April 2013

नम हवा फुलवारियों की

नम हवा फुलवारियों की, खूब भाती है मुझे। 
नित्य नव जीवन भरी कविता सुनाती है मुझे।
 
रात को जब नींद में, सपने सुनाते लोरियाँ
प्रात प्यारी शबनमी, आकर जगाती है मुझे।
 
लाल सूरज जब समंदर, में उतरता शाम को
तब क्षितिज की स्वर्ण सी, आभा लुभाती है मुझे
 
रूप जब विकराल होता, गर्मियों में धूप का
नीम की ठंडी हवा, झूला झुलाती है मुझे।
 
सावनी बरसात की, आँगन में लगती जब झड़ी 
नाव कागज़ की वो भूली, याद आती है मुझे।
 
शीत जब परवान चढ़ती, काँपता थर-थर बदन
धूप अपनी गोद में, हँसकर बिठाती है मुझे।
  
प्रकृति के हर अंश में है वंश जीवन का छिपा 
कल्पनाहर ऋतु परी, जीना सिखाती है मुझे।   
 
- कल्पना रामानी

8 comments:

shashi purwar said...

waah bahut sundar didi . hardik badhai .....aapki gajal ne dsare rang dikha diye pyar ke, khushboo ke

Unknown said...

Vry vry beautiful.....pad kar kho gaye hm!!!

Unknown said...

Vry vry beautiful.....pad kar kho gaye hm!!!

अर्चना ठाकुर said...

हृदय से लिखी ह्रदय सी सुंदर गजल..

shashi purwar said...


बहुत सुन्दर प्रस्तुति!
--
आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल बुधवार (10-04-2013) के (चर्चा मंच-1210) पर भी होगी!
सूचनार्थ.. सादर!
साहित्य खजाना पर भो होगी .आप अपनी अनमोल समीक्षा मंच पर जरूर कीजिये , स्वागत है आपका मंच पर
सूचनार्थ
सादर

shashi purwar said...

बहुत सुन्दर प्रस्तुति!
आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि-
आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा आज बुधवार (10-04-2013) के "साहित्य खजाना" (चर्चा मंच-1210) पर भी होगी! आपके अनमोल विचार दीजिये , मंच पर आपकी प्रतीक्षा है .
सूचनार्थ...सादर!

मन के - मनके said...

लगा कि,हर तरफ--उम्मीदों का समंदर फैला हुआ है,

Kailash Sharma said...

प्रिय तुम्हारे साथ का अहसास है ताकत मेरी,
‘कल्पना’ हर ऋतु परी, तुमसे मिलाती है मुझे।
...बहुत खूब...बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति...

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