रचना चोरों की शामत

मेरे बारे में

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कल्पना रामानी

Sunday 1 December 2013

मेरा प्यार मुझसे जुदा न हो

चित्र से काव्य तक

















मेरी एक छोटी सी भूल की, है ये इल्तिज़ा कि सज़ा न हो।
जो सज़ा भी हो तो मेरे खुदा, मेरा प्यार मुझसे जुदा न हो।    

बिना उसके फीके हैं राग सब, न लुभाती कोई भी रागिनी
है अधूरा सुर मेरे गीत का, जहाँ साथ उसका मिला न हो।

वो नहीं अगर मेरे पास तो, कटे तारे गिन मेरी हर निशा
कोई पल गुज़रता नहीं कि जब, उसे याद मैंने किया न हो।

मैं हूँ सोचती बनूँ मानिनी, वो मनाए मुझको बस एक बार
है ये डर मगर कि मेरी तरह, कहीं वो भी ज़िद पे अड़ा न हो।

नहीं गम मुझे मेरे मन को वो, क्यों न आज तक है समझ सका
मेरा मन तो है यही चाहता, कभी मुझसे उसको गिला न हो।

उसे ढूँढते ढली साँझ ये, तो भी आस की है किरण अभी
इन अँधेरों में मुझे थामने, किसी ओट में वो छिपा न हो।

है तमन्ना बस यही “कल्पना”, वो नज़र में हो जियूँ या मरूँ
नहीं मुक्त होगी ये रूह भी, जो उसी के हाथों विदा न हो।
   
-कल्पना रामानी

5 comments:

अजय "अरुण" said...

Waah khubsurat ..

Neeraj Neer said...

बहुत सुन्दर ग़ज़ल

surenderpal vaidya said...

बहुत खूबसूरत गज़ल।

ANULATA RAJ NAIR said...

बहुत बढ़िया ग़ज़ल....

अनु

annapurna said...

आ0 कल्पना दी इस खूबसूरत गजल के लिए आपको बहुत बहुत बधाई ।

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