रचना चोरों की शामत

मेरे बारे में

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कल्पना रामानी

Thursday 23 April 2015

वाह सुनने को अड़ा है आइना

जब से गज़लों ने कहा है आइना
वाह! सुनने को अड़ा है आइना

बात उठी बल की तो पीछे क्यों रहे   
पत्थरों से जा भिड़ा है आइना

तोड़ दे कोई, न डरता रक्तबीज   
टूक हर, बनता नया है आइना

काँपते हैं देख इसे, दागी नकाब
प्रश्न जब-जब दागता है आइना

तुम चिढ़ाओगे, चिढ़ाएगा तुम्हें
जो हँसोगे, तो हँसा है आइना

हूबहू हर चीज़ गढ़ देता तुरंत    
कौन जादू ने गढ़ा है आइना?

सत्यवादी कोई जब कहता इसे
आइने में देखता है आइना

कल्पनाजो सामना उसका करे    
शख्स अब वो ढूँढता है आइना

-कल्पना रामानी 

2 comments:

कहकशां खान said...

बहुत ही सुंदर और सार्थक रचना।

दलीप वैरागी said...

बहुत खूबसूरत

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